जिंदगी में किसी भी मोर्चे पर सफल होने के जरूरी यह जानना है कि किस रास्ते से आगे बढऩे पर अनुकूल नतीजे हासिल होंगे। बिजनेस में भी यही बात लागू होती है। हमें यही समझने की जरूरत है कि वे कौन-सी बातें हैं जिनसे नतीजे बिल्कुल पलट सकते हैं, जिनसे हार को जीत में और नाकामयाबी को कामयाबी में बदला जा सकता है।
1999 में जीरोक्स कॉर्पोरेशन में दो शोध हुए। उनमें पाया गया कि ऑनलाइन दुनिया की मात्र 5 फीसदी वेबसाइट ऐसी हैं जिन्हें कुल वेबसाइट विजिट का 75 फीसदी हिस्सा हासिल होता है। दूसरे शोध का विषय अतीत की हॉलीवुड फिल्मों का रेवेन्यू था। पाया गया कि महज 1.3 फीसदी फिल्में थीं, जिन्होंने कुल रेवेन्यू का 80 फीसदी हिस्सा कमा कर दिया था।
इसाक पिटमैन के शॉर्टहैंड का आविष्कार करने के पीछे भी कुछ ऐसा ही गणित था। उन्होंने देखा कि 70 फीसदी बातचीत में प्रयुक्त होने वाले शब्दों की संख्या करीब 700 ही है। नई ऑक्सफोर्ड शॉर्टर इंग्लिश डिक्शनरी में 5 लाख से ज्यादा शब्द हैं। इसका अर्थ यह है कि अंग्रेजी भाषा के 80 फीसदी इस्तेमाल में आने वाले शब्दों की संख्या 1 फीसदी से भी कम है।
इस पैटर्न का सबसे पहले इटली के अर्थशास्त्री विल्फ्रेडो पैरीटो ने पता लगाया था। 1897 में उन्होंने इसके जरिए इटली की आबादी में धन-दौलत के वितरण की व्याख्या की थी। उन्होंने पाया कि 20 फीसदी से कम लोग 80 फीसदी आबादी की कुल कमाई से ज्यादा कमाते हैं। उन्होंने जिस भी देश का अध्ययन किया, वहीं यह पैटर्न पाया। बीते 50 सालों के दौरान पैरीटो का यह सिद्धांत आम तौर पर ’80/20 का सिद्धांत’ कहलाने लगा है।
बिजनेस में भी 20 फीसदी ब्रांड 80 फीसदी बिक्री पर कब्जा जमाए हुए देखे जा सकते हैं और करीब 20 फीसदी बिक्री 80 फीसदी लाभ देती है। इसी तरह 80 फीसदी अपराधों के पीछे 20 फीसदी अपराधियों का हाथ होता है, तो 80 फीसदी दुर्घटनाओं की वजह 20 फीसदी वाहन चालक होते हैं। इतना ही नहीं, आप 80 फीसदी जिन कपड़ों को पहनते हैं, वे 20 फीसदी ही होते हैं। कंपनी के 80 फीसदी लाभ के पीछे 20 फीसदी कर्मचारी होते हैं, 80 फीसदी ग्राहक सेवा संबंधी मसलों के पीछे 20 फीसदी ग्राहक होते हैं। मीटिंग में लगे कुल समय के 20 फीसदी हिस्से में 80 फीसदी निर्णय लिए जाते हैं, वगैरह वगैरह। लेकिन ’80/20′ कोई जादुई फार्मूला नहीं है। दरअसल, यह कतई जरूरी नहीं है कि यह हमेशा एकदम ’80/20′ ही हो। कुछ मामलों में तो अनुपात का अंतर और भी अधिक हो सकता है। अधिकांश मामलों में यह एकदम सही है कि 80 फीसदी या इससे ज्यादा कोशिशें मोटे तौर पर अप्रासंगिक होती हैं।
इस दुनिया में कुछ ही अहम बातें हैं जिनका सही में कोई मतलब होता है। हमें उन्हीं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। बाकी सब ध्यान भटकाने के लिए है, हमें उसे अनदेखा कर देना चाहिए।
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